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चार दोस्तों, हलखा सा मेकप करके जब मैं पार्टी के लिए बाहर आय, तो देखा उस बगीचे में टेबल और कुरसीयां लगी थी.
गाने चल रहे थे, एक और डीजे था, कुछ लोग वहाँ नाच रहे थे, ज़ेसे सुबह कुछ हुआ ही नहों.
मेरे लिए थोड़ा अजीब था, किस दफ़तर में एक टीम आफिस से बाहर जाकर चुदाई करती है, पर सबको देखके लगता था कि सब इन कारिकरमों से खुश थे, क्योंकि पिछर तीन साल में हमारी टीम और कमपणी छोड़के कोई नहीं गया था.
सबको छे चे माह में मुफ़त की चुदाई जो मिलती थी, टीम की लड़कें भी खुश, लड़कें भी खुश, इन सब से ज़दा फायदा उठाते थे धीरज और दीपक, जो रोज टीम की लड़कें शाम को बाहर ले जाकर चोपते थी.
अब मुझे कुछ-कुछ माजरा समच में आ रहा था. मैं अपनी ख्यालों में थी कि किसी ने मेरी कन्दे पर हाथ रखा, क्या सोच रही हो, सब ठीक है? मैं जेब गई, अरे क्या हुआ, तुम तो भांग बीख कर खोब इंजॉय कर रही थी.